जीवनके मेला
कविता
लेखक ः भोला यादब
भौतिक वाद जीवनके मेला,
फेरब हम अधम चोला ।
लाख जतन केली अई तनसँ,
फेरब हम अधम चोला ।।
रामक नाम मनमे नै आबे,
श्याम भजनस चित भटकाबे ।
मनके चोर बहुत रस रंगी,
रंग विरंग सपना लावे ।
छन् छन् व्याकुल मन भटकावे ।
किए झेलव भंmझट झमेला,
फेरब हम अधम चोला ।
अमृत आस विषसँगे पिवैछी,
भक्तिसँगे काम, व्रmोध लावै छी ।
मन पापी तन पाप करैए,
सत्य वचन सँ दुर भगैए,
मन पापी बलजोरी करैए,
किए खेबव हम पापक नैयाँ,
फेरब हम अधम चोला ।
मित्र, भाइसँग समाजछै बैरी,
छन् छन् मनमे ठेँस पुगाबे ।
साधु जनसंग गुरुजन बैरी,
झुठ फुसके मंत्र पढाबे ।
मंदीर, मस्जीद, भगवान छै बैरी,
सत्य वचनसंग बोल न पावे ।
वेद पुरानसंग सत्य अकेला,
फेरब हम अधम चोला ।
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