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हमर जन्मभूमि

3 महीना पहिले प्रकाशित

Akul Prasad Sah

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कविता


भूवन भूवन भटकु नै,
जन्मल छी कोन ठाम ।
रुप रङग निखरल अछि,
याद करु ओ गाम ।
जन जन आ मन मन मे,
हमर जन्म भूमि ।
जनमल छि जै ठाम,
ओहे माटी चुमी ।

माटीके रंग रुप नै,
कलाके कमाल अछि ।
कुमहार गह्रैत अछि बर्तन,
देखु ई मिसाल अछि ।
मायक कोईँख जनमल,
बहुतो बाल बच्चा ।
किनको जीवन कालिक अछर,
किन्को चान्द सरीखा ।
किन्खो जन्म सँ,
जन्म दाता आ जन्म भूमियो तबाह अछि ।
धु्रब प्रहलाद आ बुद्ध के देखीयौ,
अखन्तो वाह वाह अछि ।

भुखन भैया, बुढीया दैया,
झौलीया काका के पराती ।
साँझ गौडगहर पर,
गैबरवा ठोकैत अछि लाठी ।
खलिफा काका अखारापर,
सढिया संग लरैत अछि ।
कैलि काकी गुवा लेने,
खेतक ओर बढैत अछि ।
बिसैर जन्मभूमि,
कुदकु नै धाम धाम ।
माई बाप ब्याकुल त,
कि करब राम नाम ।

कर्म करु नाम ला,
कौरी के की मोल अछि ।
मधेशक माटी अखन्तो,
अन्मोल अछि ।
अभिनस्त प्राणी के,
बोली नै बोल अछि ।
मोलजोल राजनीति संग,
बीर सहिदक खोल अछि ।

दिन मे दिया बारुनै,
दिनकर जी उगले छथिन,
मधेश मे मारु झारु नै,
मधेशीया नेता सुतले छथीन ।

आई काईल झगडा अछि,
सत्ता रुपी माला ला ।
गिरगीटीया नेता ठार छैत,
मधेशक कुञ्जी ताला ला,
राजाके राजमे मधेशीया निरबुधीया,
लोकतन्त्र, गणतन्त्र मे भेलौ हम,
नौ नौ कुटीया ।

तैँ भुवन भुवन भटकु नै
जन्मल छी कोन ठाम ।
रुप रङग निखरल अछि,
याद करु ओ गाम ।
जन जन आ मन मन मे,
हमर जन्म भूमि ।
जनमल छि जै ठाम,
ओहे माटी चुमी ।

 

लेखक ः भोला यादब

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