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कविता

“अकिदा और हम“अकायदों के घरोंदे बिखर रहे हैं ,सडकों पे इधर उधर जहाँ तहाँ बिखर रहे हैं मुझको अंदेशा है –––बादशाहों की कोई दुसरी किरदार हामारे उपर थ..